समाज में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति..
वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर विशेष
डाॅ0 सन्तोष कुमारी रस्तोगी
1897 में विश्व प्रसिद्ध फ्रेंच समाजशास्त्री ‘इमाईल दुर्खीम’ ने ‘सुसाइड’ नाम से प्रकाशित अपनी पुस्तक में तमाम केस स्टडी व गहन शोध के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि आत्महत्या लम्बे अवसाद(डिप्रेशन) का कारण है और इसके पीछे सामाजिक,सांस्कृतिक,वैचारिक संघर्ष को जिम्मेदार ठहराया।आज बहुत तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में जब व्यक्ति को चारों ओर से विषम परिस्थितियों का घेरा जकड लेता है,व्यक्ति पर समाज व परिवार का नियंत्रण शिथिल होने लगता है ऐसी विषम दशाओं में व्यक्ति स्वयं को ही खत्म करने की दिशा मे कदम उठा लेता है।
“आत्महत्या गहरे दुख व निराशा के लम्बे सफर से ऊपजी वह परिणति या मंजिल है जिसका रास्ता तमाम अवसाद उत्पन्न करने वाली सामाजिक,मानसिक परिस्थितियों से होकर गुजरता है।”
समस्याओं के बोझ तले दबे ना जाने कितने शख्स अपने भीतर तमाम दुख भरे गहरे राज समेटे रहते हैं।
ऊपर से हंसते-मुस्कुराते चेहरे भीतर ही भीतर अपने अंदर ना जाने कितने दर्द,द्वंद और घुटन का भारीेबोझ ढो रहे होते हैं।
गोपनीयता भंग होने व समाज में हंसी उडाये जाने या बदनामी के डर से संकोचवश अपनी समस्यायें किसी से शेयर तक नही कर पातें।
हमारे समाज में दिखावटी और बनावटीपन की तेजी से पनपी प्रवृत्ति ने आज सामाजिक सम्बन्धों में ना केवल जटिलता,खोखलापन और दूरियां उत्पन्न की हैं बल्कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा को भी खूब विकसित किया है।
एक-दूसरे के सामने झूठ-मूठ के खुश रहने और झूठी तरक्की के कसीदे गढने की प्रवृत्ति आम हो चली है।
दिमाग में तब सन्नाटा छा जाता है जब समाज में प्रमुख भूमिकाएं निभाने वाले प्रबुद्धजीवी,आर्थिक सम्पन्न,हाई प्रोफाइल लोगो के आत्महत्या की खबरे सामने आती हैं।
मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल में मंत्री व अध्यात्मिक प्रवचनवक्ता भय्यू जी महराज व कानपुर पूर्वी के एस0पी0 सुरेंद्र दास के द्वारा की गयी आत्म हत्यायें आज भी ज़हन से नही उतरती।भारत में बढते तनाव और अवसादग्रस्तता के चलते सामूहिक आत्महत्याओं के मामले भी सामने आ रहें हैं जो बेहद चिंताजनक हैं।
विशेषज्ञ और शोध बताते हैं कि-
??”आत्महत्या करने वालो में 90% लोग अवसाद के रोगी रह चुके होते हैं।”
??”15 से 29 आयुवर्ग में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले देखने को मिले हैं।
??नशे का सेवन करने वालो में आत्महत्या की दर गैर नशे वालो से ज्यादा पायी गयी है।
प्रमुख कारणों में पारिवारिक बिखराव,नशा,बेरोजगारी,जर्जर होते संयुक्त परिवार का ढांचा,
मानसिक रोग
स्किजोफ्रेनिया,डिप्रेशन,
अकेलापन जैसी तमाम वजहें आत्महत्या के लिए जिम्मेदार होती हैं।
विभिन्न शोध के नतीजे बताते हैं कि-
?? आत्महत्या की मनोदशा धारण करने वाले लगभग 80 फीसदी लोग खुदकुशी करने से लगभग चंद हफ्ते या चंद महीने पहले ही पूर्व चेतावनियां या इशारा दे देते हैं।
अतः इन इशारो पर गौर करें।कतई हल्के मे ना लें।
वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे के अवसर पर ये संकल्प ले कि समाज में ऐसे सम्भावित व्यक्तियों को जिनमें आत्महत्या से पूर्व के लक्षण या मानसिक रोगों की गिरफ्त मे आने के लक्षण दिख रहे हों उनसे मित्रवत व्यवहार करें।
बेहतर काउंसिलिंग के जरिये ही आत्महत्या की दर पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
उदासी,निराशा में रहने या कम बात करने वालो पर नजर रखी जाए और उनसे खुलकर निःसंकोच बातें की जाए।
समाज के जिम्मेदार और जागरूक नागरिक होने के नाते ये हम सभी का फर्ज है कि इस पर नजर रखी जाए।
समाज में दोस्ताना माहौल पैदा किया जाए ताकि लोग भीतर भरे भारी अंतर्द्वंद को लादकर जीने की बजाय एक दूसरे के बीच सहजता और सरलता से शेयर करके खुद को हल्का कर सकें।
यही जरूरी बाते हैं जिनको व्यवहार मे लाकर हम आत्महत्या के दर मे भारी कमी ला सकते हैं।
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डाॅ0 सन्तोष कुमारी रस्तोगी
Ph.D (“मनोरोग एवं समाज”) एवं
प्रदेश प्रवक्ता
आम आदमी पार्टी
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