सिवाल खास में गुलाम मोहम्मद के ‘विरोध’ का लाभ उठा सकती है भाजपा

गठबंधन प्रत्याशी से बिगड़ा समीकरण, पशोपेश में सिवालखास का वोटर
-मुस्लिम, जाट और दलित बाहुल्य सीट पर जातिगत आधार पर होगा चुनाव
मेरठ। जिले की सिवालखास विधानसभा सीट पर 2017 के चुनाव में बीजेपी का कमल खिला था। जिले की ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली इस सीट की खासियत यह है कि पिछले छह विधानसभा चुनावों के दौरान कोई भी दल यहां से लगातार दूसरी बार चुनाव नहीं जीत सका है। अभी यहां से बीजेपी के विधायक हैं। परिसीमन के बाद तैयार हुई सिवालखास सीट पर 2007 में विनोद कुमार हरित ने जीत हासिल की। उसके पहले 2002 में रणवीर राणे आरएलडी के टिकट पर विधायक बने थे। 1996 में भारतीय किसान कामगार पार्टी से बनारसी दास चांदना और उससे पहले जनता दल से चरण सिंह जीते थे।
सिवालखास सीट बागपत लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है। यहां से रालोद प्रमुख चौधरी जयंत सिंह के दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और जयंत के पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय चौधरी अजित सिंह कई बार सांसद रहे। पिछला लोकसभा चुनाव जयंत ने इसी सीट से लड़ा था, हालांकि वे कड़े मुकाबले में भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह से हार गए थे। जयंत इस सीट को हर हाल में अपने पास रखना चाहते थे। कुछ नेताओं का मानना है कि जिले में एक सीट पर जाट प्रत्याशी उतारा जाना चाहिए थाा। इसके बिना सोशल इंजीनियरिंग पूरी नहीं होगी। सिवालखास, किठौर, दक्षिण और शहर सीट से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जा चुके हैं। पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद 2012 में सिवालखास से विधायक बने थे। विधायक रहते हुए 2014 में उन्हें सपा ने लोकसभा चुनाव में बागपत से प्रत्याशी बनाया लेकिन, हार गए। 2017 में भी सिवालखास से विधानसभा चुनाव हार गए थे। इस बार भी उनके सामने काफी चुनौतियां है। यहां बसपा मुस्लिम प्रत्याशी नन्हे प्रधान को मैदान में उतार चुकी है। एआईएमआईएम भी मुस्लिम प्रत्याशी लड़ा रही है। ऐसे में रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी पर सबकी नजरें टिकी है। इस बारे में गुलाम मोहम्मद का कहना है कि उन्होंने विधायक रहते अपने कार्यकाल में 13 कॉलेजों का निर्माण कराया। लड़कियों के लिए भी एक डिग्री कॉलेज बनवाया। वे हमेशा लड़कियों को शिक्षा मिले इसके लिए आवाज उठाते आए हैं।
मुस्लिमों के बाद सर्वाधिक संख्या में जाट
गौरतलब है कि सिवालखास सीट पर मुस्लिमों के बाद सर्वाधिक संख्या जाट मतदाताओं की है। इसी कारण अगर सिवालखास विधानसभा सीट रालोद के खाते में जाती तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती थीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जातिगत आधार पर बहुत मायने रखता है। हर सीट पर जातिगत समीकरणों को साधने के लिए भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस रखा है। सूत्रों की माने तो इस बार भी चुनाव जातिगत आधार पर होगा। नन्हे प्रधान और गुलाम मोहम्मद की एक ही जाति होने के कारण बसपा प्रत्याशी मैदान छोड़ सकते है।
पश्चिमी यूपी के महत्वपूर्ण सीटों में सिवालखास
सिवालखास विधानसभा सीट पश्चिमी यूपी के महत्वपूर्ण मेरठ जिले में आती है, वर्तमान में यहां से बीजेपी के जितेंद्र पाल सिंह विधायक है। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के गुलाम मोहम्मद को 11421 वोटों के अंतर से हराया था। जितेंद्र पाल ने 72,842 वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं दूसरे नंबर पर रहे सपा के गुलाम मोहम्मद को 61,421 वोट मिले थे, जबकि तीसरे नंबर पर रालोद के यशवीर सिंह थे, जिन्हें 44,710 वोट प्राप्त हुए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में सिवाल खास में कुल 32.32 प्रतिशत वोटिंग हुई थी।
मैदान छोड़ सकते हैं बसपा प्रत्याशी
जनपद की सबसे महत्वपूर्ण सीटों में शुमार सिवालखास विधानसभा सीट पर भाजपा ने जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन मनिन्द्रर पाल सिंह को टिकट दिया है। पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद सपा-रालोद गठबंधन से मैदान में है, पूर्व विधायक को रालोद का चुनाव चिन्ह दिया गया है। बसपा ने नन्हे प्रधान को प्रत्याशी बनाया है। यहां मुकाबला गठबंधन और भाजपा के बीच होता नजर आ रहा है। सूत्रों की माने तो बसपा प्रत्याशी का टिकट कट सकता है या वे खुद को मैदान से बाहर कर सकते हैं। इसका कारण गुलाम मोहम्मद का टिकट होना बताया जा रहा है। सूत्र बताते हैं, इस सीट पर चुनाव जातिगत आधार पर होगा।