ड्रोन टैक्नोलॉजी से कृषि की होगी उन्नत: प्रो. संगीता शुक्ला

-सीसीएसयू में चल रहा साइंस वीक फेस्टिवल, हुआ वीडियो का प्रसारण
मेरठ। खेती-किसानी में कृषि ड्रोन के उपयोग से कई फायदे हो सकते है। बेहतर फसल उत्पादन के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है। इससे सिंचाई योजना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, मिट्टी की गुणवत्ता की जानकारी, कीटनाशकों के छिड़काव आदि में मदद मिल सकती है। ड्रोन के उपयोग से किसानों को उनकी फसलों के बारे में नियमित रूप से सटीक जानकारी मिल सकती है, जिससे उन्हें निर्णय लेने में आसानी हो सकती है। साथ ही, समय और संसाधन की बबार्दी को रोका जा सकता है। यह बात साइंस वीक फेस्टिवल के चौथे दिन आयोजित कार्यक्रम के दौरान चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने कही।
उन्होंने कहा कि ड्रोन के उपयोग से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों, संक्रमित क्षेत्रों, लंबी फसलों और बिजली लाइनों के नीचे कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। ड्रोन सटीक डाटा प्रोसेसिंग के साथ सर्वेक्षण करता है, जिससे किसानों को तेजी से और सटीक निर्णय लेने में मदद मिलती है। ड्रोन द्वारा एकत्रित किए गए डाटा की मदद से समस्याग्रस्त क्षेत्रों, संक्रमित/अस्वस्थ फसलों, नमी के स्तर आदि पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। कृषि ड्रोन उर्वरक, पानी, बीज और कीटनाशकों जैसे सभी संसाधनों का बेहतर उपयोग करने में सक्षम बनाता है। केंचुआ खाद निर्माण से कचरा पदार्थों के निरापद प्रबंधन, पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, पर्यावरण सुधार तथा पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है। यह जैविक कृषि का प्रमुख आधार है तथा मानव समाज के स्थिर और चहुंमुखी (कृषि, पर्यावरणीय, आर्थिक – सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीकी) विकास में सहायक है। यह बात प्रो. ओमप्रकाश अग्रवाल पूर्व कुलपति जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर ने जैविक खाद और केचुआ खाद के क्षेत्र में नवाचार के अवसर और चुनौतियां विषय पर बोलते हुए कही। प्रो. ओमप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि वर्मिकम्पोस्टिंग इकाइयों द्वारा कृषक और पशुपालक अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं, बेरोजगार स्वरोजगार के रूप में अपना सकते हैं, महिलाएं इसे हॉबी के रूप में अपनी फुलवाड़ी और किचिन गार्डन के लिए कचरे से खाद बना सकती हैं, वरिष्ठ नागरिक अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं और छात्र छात्राएं कुछ नया और पर्यावरण मैत्रिक सीखने हेतु इसमें रुचि ले सकते हैं। केंचुआ खाद के क्षेत्र में लघु उद्योग, उद्यमिता, स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं। युवाओं को प्रोत्साहित करने हेतु स्किल डेवलपमेंट और स्टार्टअप कार्यक्रम भी संचालित किए जा सकते हैं। गरीब और पिछड़े वर्ग के पुरुष/महिलाएं स्व सहायता समूह बना कर अथवा मनरेगा कार्यक्रम के अन्तर्गत इसमें कार्य दिया जा सकता है। वर्मी कंपोस्ट के अलावा प्रो. ओमप्रकाश अग्रवाल ने मधुमक्खी पालन और मधुमक्खी में मूल्यवर्धक उत्पादनों तथा विश्व के सर्वोत्तम योजना स्विरूलीना के विशिष्ट प्रोडक्ट विकास के बारे में विस्तार से बताया। कहा कि इनका इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है, बीमारियों से बचाव होता है और उनके इलाज में मदद मिलती है। कार्यक्रम के अंत में विज्ञान प्रसार द्वारा उपलब्ध कराई गई इस साइंस फॉर चेंज प्रॉब्लम्स इन विलेज नामक वीडियो का प्रसारण किया गया, इस कार्यक्रम में कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला, प्रति कुलपति प्रोफेसर वाई विमला, प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा, प्रोफेसर मुकेश शर्मा, प्रोफेसर संजीव शर्मा, प्रोफेसर एके चौबे, डॉ. नाजिया तरन्नुम, डॉक्टर निखिल कुमार, डॉक्टर मीनू तेवतिया, डॉ. राजीव अग्रवाल, डॉ. प्रियंका कक्कड़, डॉ. मनीषा भारद्वाज, डॉ. प्रदीप चौधरी, डॉक्टर पूजा, डॉक्टर सत्येंद्र आदि मौजूद रहें।