पैगंबर साहब के बताए रास्ते पर चलने का संदेश देती है बारह वफात

इबादत के बाद मुल्क में अमन के लिए की गई दुआएं।
बारहवफात एक ऐसा दिन जहां कहीं खुशी और कहीं गम
विरासत त्यागी
किठौर
थाना क्षेत्र किठौर के विभिन्न कस्बों और गांवों में शांति पूर्वक 12 वफात मनाई गई ।मुस्लिम समुदाय ने देर रात तक मस्जिदों में नमाज और कुरान की तिलावत की 12 वफात या फिर जिसे मिलादुन्नबी के नाम से भी जाना जाता है यह दिन इस्लाम मजहब का एक खास दिन है क्योंकि इसी दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब का जन्म हुआ और उसके साथ ही इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ इस वर्ष बारह वफात 9 अक्टूबर रविवार के दिन मनाया गया इस दिन को गम और खुशी दोनों तरह से बनाया जाता है।
इस दिन को लेकर आलमेदीन के अलग-अलग विचार हैं कुछ दीन के आलिमो का ऐसा मानना है कि इस दिन को मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद से ही मनाया जा रहा है।लेकिन कुछ इससे इत्तेफाक नहीं रखते । उनका यह मानना है कि मोहम्मद साहब के इंतकाल के कई सौ साल बाद यह दिन एक पर्व के रूप में सामने आया । सन 1588 में उस्मानिया साम्राज्य के दौरान इस दिन को एक पर्व के रूप में काफी मकबूलियत मिली और तब से हर वर्ष इसी तारीख को काफी शानो शौकत से मनाया जाने लगा ।यही वजह है कि हर वर्ष इस्लामिक कैलेंडर की 12 रबी अल अव्वल को धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचिन काल मे अरब के अंदर लोग उस समय कबीलों की शक्ल में रहते थे और जरा सी बात पर तलवारों का इस्तेमाल करना आम बात थी लेकिन मोहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम के द्वारा लोगों को जीने का नया तरीका सिखाया उनके जीवन में ऐसी बहुत सी अनगिनत उपलब्धियां हैं। अपनी शिक्षा द्वारा उन्होंने अरबों के कबीलाई समूह को एक सभ्य समाज में बदल दिया इस्लाम से पहले समाज में इन बुराइयों की वजह से लोग जरा सी बातों पर एक दूसरे का कत्ल कर दिया करते थे। इस्लाम के आने के बाद अरब के यह बर्बर कबीलों में ना सिर्फ सभ्यता की रोशनी जगमगाई बल्कि भाईचारे का भी विकास हुआ ऐसा सिर्फ मोहम्मद साहब की शिक्षा और कुरान के संदेश के कारण ही हो सका।
बारह वफात का इतिहास
अगर देखा जाए तो 12 वफात का इतिहास काफी पुराना है। विभिन्न मुस्लिम समुदायों का इस त्यौहार को लेकर अपना अलग-अलग विचार है ।सुन्नी समुदाय द्वारा इस त्यौहार को गम के रूप में मनाया जाता है । जबकि वहीं शिया समुदाय द्वारा इस दिन को खुशी के रूप में मनाया जाता है इसी तारीख को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ और इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था इस्लाम के रूप में विश्व को एक ऐसा खूबसूरत तोहफा दिया गया था जिसको दुनिया ने इस्लाम के नाम से जाना ।इस्लाम के आने से पहले अरब समाज में तमाम तरह की बुराइयां मौजूद थी जैसे लोगों द्वारा अपनी बेटियों को जिंदा दफना दिया जाता था ।जरा जरा सी बातों को लेकर म्यान से तलवार निकाली जाती थी और कत्लेआम करना एक आम बात थी। लेकिन मोहम्मद साहब के संदेश के बाद अर्थात इस्लाम के जहूर के बाद यह बुराइयां खत्म हो गई 12 वफात के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद में जाते हैं और पैगंबर मोहम्मद साहब के बताए हुए रास्ते पर चले और अपने जीवन में यह अहद करे कि मोहम्मद साहब द्वारा मानवता को दी गई शिक्षा पूरे आलम में सैलानी का अज़्म उठाएं
बारह वफात का महत्व
बारह वफात को ईद ए मिलाद उन नबी के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है पैगंबर की पैदाइश का दिन इस दिन रात भर तक मस्जिद में इबादत की जाती है और उनकी कही गई बातों को समझा जाता है और मौत के बाद जन्नत के दरवाजे उनके लिए खुल जाएं यह दिन हम इस बात का एहसास कराता है कि आज भी पैगंबर मोहम्मद साहब हमारे बीच है और उनकी कही गई बातें समाज को आज भी अच्छा बनाने की कोशिश कर रही है। हमारा यह कर्तव्य है कि उनकी खूबसूरत और महत्वपूर्ण शिक्षाएं हर इंसान तक पहुंचे क्योंकि आज के दौर में उनके द्वारा बताई गई बातों का लोग गलत अर्थ निकाल रहे हैं जिसके कारण विश्व में इस्लाम के प्रति लोगों में गलत एहसासा देखने को मिल रही है। इसलिए जरूरी है कि हम उनके दिखाए गए रास्ते पर चलें और विश्व में खुशहाली तथा भाईचारे के संदेश को कायम करें ।जिससे यह खुशाली हमारे मुल्क में भी आएगी और साथ ही साथ भाईचारे के संदेश को कायम करे जब ऐसा होगा तो हमारा मुल्क दुनिया के नक्शे में भाईचारे की जीती जागती मिसाल होगी और दुनिया हमारे मुल्क को और मुल्क में रहने वाले हर बाशिंदे को मोहब्बत की नज़र से देखेगी और इसके द्वारा तहज़ीब ओ तमद्दुन व फ़लाह वो बहबूद संभव हो पाएगा। यही वजह है कि हम लोगों को 12 वफात की खासियत को समझना चाहिए और इसके सही मतलब को अपने जीवन में समाहित करना चाहिए।
इस मौके पर किठौर जामा मस्जिद के शाही इमाम हाफिज हुसैन ने नमाज के बाद कहां की मोहम्मद साहब की असल मोहब्बत यह है कि उनकी सुन्नतों पर अमल किया जाए और हम यह अहद करें कि हम अपनी जिंदगी मोहम्मद साहब के बताए हुए रास्ते पर गुजारेंगे और उन पर अमल करेगे और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को अपनी जिंदगी में उतारे। कस्बा क्षेत्र के विभिन्न गांव में ईद उल मिलाद उल नबी अर्थात 12 वफात भाईचारे और सौहार्द के साथ मनाई गई और अपने मुल्क में भाईचारे हमेशा बना रहे इसके लिए उलेमाओ ने मस्जिदों में दुआ कराई।