साहित्य

नींद से जाग ये हकीकत है उठ,अगर कौम से मुहब्बत है!

कौम पर खन्जरे-सितम उट्ठा
दिल में शायर के दर्दे-गम उट्ठा
जहने-हस्सास हो गया बेचैन
कांपते हाथ में कलम उट्ठा।

उठ मुसलमां कि अब जरूरत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

क्या हुआ तुझको आलमे-मुस्लिम
कौम को क्यों नहीं गमे-मुस्लिम
कितने मासूम रोज मरते हैं
घुट न जाए कहीं दमे-मुस्लिम।

तू है गफलत में अब भी हैरत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

अहले ईमां है हर फलस्तीनी
फिर परीशां है हर फलस्तीनी
बेरूखी तेरी देखकर भाई
देख हैरां है हर फलस्तीनी।

बाइसे-कर्ब तेरी गफलत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

बात ऐसी भी क्या हुई भाई
कैसी अहसासे-कमतरी भाई
तू समन्दर में रास्ता कर ले
रब ने कुव्वत तुझे वो दी भाई।

तुझमें शेरे-खुदा की ताकत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

अज्मे-मोहकम है वो कहां तेरा
लुट न जाए कहीं जहां तेरा
फिर है खतरे में कौम की अस्मत
फिर है दरकार इम्तहां तेरा।

उठ अगर तुझको पासे-इज्जत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

तेरे भाई तो हैं मुसीबत में
और तू डूबा हैै एशो-इशरत में
भाई शायद तू भूल बैठा है
तू है प्यारे नबी(स0)की उम्मत में।

ऐसी तफरीह पर भी लानत हैै
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

ऐसे गर वक्त को गंवाएगा
तन्हा तन्हा तू मारा जाएगा
है फलस्तीन पर जो यूरिश आज
कुफ्र कल तुझको भी सताएगा।

नींद से जाग ये हकीकत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

जुल्म की हो चुकी है हद अब तो
कामयाबी की दे सनद अब तो
अब तो बच्चों पे भी है बमबारी
या खुदा भेज दे मदद अब तो।

दाव पर मुस्लिमों की इज्जत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।

आम लोगों को , हुक्मरानों को
कौम के सारे पासबानों को
हर मुफक्किर को अपनी मिल्लत के
अहदे-हाजिर के नोजवानों को।

आज ‘गौहर’ की ये नसीहत है
उठ अगर कौम से मुहब्बत है।।

डा.तनवीर गौहर मुजफ्फरनगरी

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