नदलेस ने ऑनलाइन ओपन मीटिंग का किया आयोजन

दिल्ली में नदलेस की कार्यकारिणी ने दो दलित लेखक संघों को एक कराने हेतु तैयार निवेदित प्रस्ताव पत्र संबंधितों को प्रेषित करने एवं मुहिम में भागीदार लेखकों का आभार ज्ञापन के संदर्भ में ओपन ऑनलाइन मीटिंग की। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार खन्नाप्रसद अमीन ने की व संचालन नदलेस के उपाध्यक्ष व दलित साहित्य प्रतिनिधि मंडल के कार्यवाहक सचिव डा. अमित धर्मसिंह ने किया।
अध्यक्षता कर रहे खन्नाप्रसाद अमीन ने कहा कि प्रस्ताव पत्र वास्तव में बहुत अच्छी पहल है। दोनों दलित लेखक संघों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। अपने विचारों से अवगत कराते हुए उन्होंने कहा कि जब उन्हें पहली बार नव दलेस के गठन की वॉट्सएप से सूचना मिली थी तो उन्हें दुख हुआ था। उन्हें लगा था कि जब पहले से दलित लेखक संघ है तो फिर इस एक और संगठन की क्या जरूरत? जब हम सबके आदर्श बाबा साहब अम्बेडकर हैं। वे सबसे पहले संगठित होना ही सिखाते हैं। हम सब बाबा साहब के त्रि सिद्धांत से भी वाकिफ हैं, फिर विभाजन किसलिए? मगर आज जो दलित लेखक संघ का हाल है, उससे लगता है कि नदलेस का बनना कोई बुरा नहीं, क्योंकि आज हमारे संगठनों में भी नव ब्राह्मणवादी दलित पैदा हो गए हैं जिनकी वजह से मौजूदा संगठन टूट रहे हैं और नए संगठन बनाने की मजबूरी पेश आ रही है। यदि पुराना दलित लेखक संघ मिलकर एक नहीं होता तो फिर नदलेस ही अपनी नई और पुरानी पीढ़ी को संगठित करके चले। यही उचित होगा।
डा. अमित धर्मसिंह ने प्रस्ताव पत्र का परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रस्ताव पत्र पच्चीस पृष्ठों का है। जिसमें करीब 75 लेखकों के मत और विचार सम्मिलित हैं। प्रस्ताव पत्र के पांच प्रमुख चरण हैं। प्रथम चरण में, 27 अक्टूबर 2021 को नदलेस की कार्यकारिणी द्वारा आयोजित ‘दो दलित लेखक संघों के होने पर स्वीकार्यता का संकट’, विषय पर की गई ऑनलाइन मीटिंग की रिपोर्ट सम्मिलित की गई है। दूसरे चरण में, रोहिणी के जैपनीज पार्क में प्रस्ताव पत्र तैयार करने हेतु अस्थाई कार्यवाहक समिति और दलित साहित्य प्रतिनिधि मंडल का औपचारिक गठन और प्रस्ताव पत्र तैयार किये जाने की संपूर्ण कार्यवाही रखी गई है। 8 नवंबर, 2021 को डा. गुलाब और डा. अमित धर्मसिंह के निर्देशन में तीन सदस्यीय अस्थाई ‘मताभियान समिति’ गठित की गई, जिसके प्रमुख सदस्य नदलेस की संरक्षक पुष्पा विवेक, उपाध्यक्ष, डा. अमित धर्मसिंह और प्रचार सचिव डा. अमित कुमार बनाएं गए। मताभियान समिति ने दस दिवसीय कार्यवाही में दलित साहित्य के नौ वरिष्ठ लेखकों से मुलाकात कर, प्रस्ताव पत्र के संदर्भ में उनके मत और विचार जाने, जो प्रस्ताव पत्र के तीसरे चरण में दर्ज किए गए हैं। 14 नवंबर, 2021 को दिल्ली से बाहर रह रहे लेखकों के मत और विचार जानने हेतु एक ऑनलाइन पत्र तैयार किया गया और संबंधित लेखकों को ऑनलाइन प्रेषित किया गया, जिस पर इकतालीस लेखकों के मत और विचार प्राप्त हुए। ये मत और विचार प्रस्ताव पत्र के चौथे चरण में दर्ज हैं। प्रस्ताव पत्र के पांचवे चरण में कार्यवाहक समिति, नदलेस और दलित साहित्य प्रतिनिधि मंडल के पच्चीस सदस्यों तथा सभी सहमत और समर्थक पचास सदस्यों की नामावली प्रस्तुत की गई है। इस तरह प्रस्ताव पत्र पूरी गंभीरता और न्यायोचित ढंग से तैयार किया गया है।
उमरशाह ने कहा कि मैंने प्रस्ताव पत्र को पूरा पढ़ा है। बहुत अच्छा कार्य हुआ। इसका उद्देश्य और प्रस्ताव दोनों दलित साहित्य और संगठनों के लिए हितकर है। झारखंड से जुड़े चितरंजन गोप लुकाटी ने कहा कि एक जैसे नाम के दो-दो संगठन होना बहुत ही बेहूदा लगता है। जिसका समाधान होना ही चाहिए। प्रस्ताव पत्र के बारे में सुनकर लगा कि दोनों को एक होने का यही बेहतर विकल्प हो सकता है। आज जिस तरह के सामाजिक हालत बन रहे हैं, उनको देखते हुए भी हमें संगठित होना ही चाहिए। सरिता संधू ने माना कि दोनों दलित लेखक संघों को एक कराने की यह बहुत अच्छी पहल है। हम सबको चाहिए कि हम सभी अपने-अपने मनमुटाव को भूलकर एक मंच से जुड़े, ताकि फिर किसी को संगठन से अलग न होना पड़े। डा. दीपा ने कहा कि दलित लेखक संघ के बिखराव से तुलना की समस्या पैदा हो गई है। जब एक ही नाम के दो-दो संगठन बन गए है तो हर किसी को यह सोचने का मौका मिल गया है कि आखिर इनमें से कौन सही है और कौन गलत। दोनों एक ही नाम और एक ही वैचारिकी वाले संगठन हैं तो दोनों को एक होना ही चाहिए। प्रस्ताव पत्र एक होने का अच्छा विकल्प है। रिछपाल विद्रोही ने कहा कि प्रस्ताव पत्र के बारे में जानकर और सभी वक्ताओं के विचार जानकर यह सवाल सहज ही उत्पन्न हुआ कि जब एक ही नाम वाले दोनों दलित लेखक संघ की एक ही विचारधारा है तो दोनों अलग क्यों हैं? निश्चित रूप से उन्हें एक होना ही चाहिए। सभी का यही विचार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रस्ताव पत्र के माध्यम से जो कार्यवाही की जा रही है, वह बेहद जरूरी कार्यवाही है। बृजपाल सहज की टिप्पणी इस प्रकार रही कि जब हम सब एक ही स्वनुभूति वाले लोग हैं, हमारी समस्याएं एक हैं, हमारा साहित्य एक है तो फिर संगठन दो क्यों है? हमें एक होना ही चाहिए। इस संदर्भ में दोनों दलित लेखक संघों को भी प्रस्ताव पत्र का गंभीर संज्ञान लेना चाहिए। इस तरह सर्वसम्मति से प्रस्ताव पत्र को पास किया गया और संबंधितों को भेज दिए जाने की बात का अनुमोदन किया। प्रस्ताव पत्र संबंधितों को देने हेतु दलित साहित्य प्रतिनिधि मंडल के कार्यवाहक अध्यक्ष और सचिव डा. अमित धर्मसिंह को नामित किया गया। दोनों संबंधितों के घर जाकर प्रस्ताव पत्र दस्ती तौर से सौंपेंगे। अंत में डा. अमित धर्मसिंह ने मीटिंग में शामिल होने वाले सभी वक्ताओं और प्रस्ताव पत्र में शामिल सभी लेखकों, समर्थकों का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया।