साहित्य

दर्द का वो मंजर अब और न हो…

दर्द का वो मंजर अब और न हो…

वो दर्द, सिसकी और खौफ़ का मंजर
धूएँ की मोटी परत से तिलमिलाता अंबर
हवा के शोर से डाली से बिछुड़ती पाती
आतिशों से काँपती धड़कती छाती
अब और न हो, अब और न हो।

दुनिया में फिर शांति का परचम लहराओ यारो
दम तोड़ते भाई चारे को जगाओ यारो
सो चुके हैं गहरी नींद बुद्ध, गांधी, टॉलस्टॉय
कोई उनको अब नींद से जगाओ यारो।

युद्ध में अक्सर दरक जातें हैं बड़े दरख़्त
कोई नन्हें पौधों का हाल बताओ यारो
भूख प्यास, महामारी सब बाद की बात है
कोई सुकून की एक नींद ले आओ यारो।

सिर पर कफ़न, पेट खाली, हाथों में किताबें
कोई अपने वतन उन बच्चों को ले आओ यारो
हमने इतिहास पढ़ा है युद्ध की विभीषिका का
तुम उस इतिहास को न दोहराओ यारो।

कई रातों से जाग रही हैं बूढ़ी आँखें
रोज़ लड़ती है जंग खुदा से खुले आसमान के आगे
खुद को अखबारों से बहलाते हैं कपकपाते हाथ
पिघलने लगा है कभी चट्टान सा तना मजबूत सीना
जंग के बादलों ने घेर रखा है दुनिया को
कोई खैरियत बच्चों की सुनाओ यारो।

बरसों लगे होंगे जिस गुलिस्तां को बसाने में
तुम एक झटके में वीरान ना बनाओ यारो
चीखें, दर्द, सिसकी और खौफ़ का मंजर
बहुत हो गया बार बार न दोहराओ यारो।

बंद हों नफरती आँधियों का कटीला मौसम
दुनिया में फिर शांति का परचम लहराओ यारो
वो दर्द, सिसकी और खौफ़ का मंजर
अब और न हो, अब और न हो।।

 

Dr. Naaz parween

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