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संसाधन न उपाय, कैसे हो वन्य जीवों की सुरक्षा

(काज़ी अमजद अली)
मुज़फ्फरनगर। पर्यावरण बचाने के साथ साथ वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर वैश्विक स्तर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अनेक स्थानों को वन्य जीवों के लिए सुरक्षित किया गया है, जिसके फलस्वरूप वन्य जीवों की सुरक्षा व उनके जीवन को लेकर जागरूकता तो अवश्य आई है किन्तु वन्य जीवों की घटती संख्या सभी उपायों पर प्रश्नचिन्ह खडे करती है। हस्तिनापुर सैन्चुरी क्षेत्र के गंगा खादर में हैदरपुर वैटलैण्ड पर प्रशासन की कृपा दृष्टि जरूर है किन्तु सभी प्रयास अभी ऊँट के मुंह में जीरे के बराबर ही नजर आते हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा व उनकी संख्या में वृद्धि के लिए अभी गम्भीर प्रयासों की जरूरत शेष है।
हजारों हेक्टेयर भूमि में फैले सेंचुरी क्षेत्र में शुकतीर्थ गंगा खादर का एक बडा भाग अभी भी वाइल्ड लाईफ के लिए उपयुक्त जगह है। किन्तु प्रशासन की उदासीनता के कारण वन विभाग का कार्यालय भी खुद उसकी लापरवाही की दास्तान बयान कर रहा है। शुकतीर्थ में स्थित वन विभाग का कार्यालय 25 वर्ष पहले अपने शानदार स्वरूप के चलते प्रभाव स्थापित करता था किन्तु लगातार उपेक्षा के कारण आज वन विभाग का कार्यालय विभाग की बदहाली की तस्वीर बन चुका है। बुधवार को वाइल्ड लाईफ डे के अवसर पर वन विभाग द्वारा कोई कार्यक्रम भी आयोजित करना मुनासिब नहीं समझा गया। जिससे पता चलता है कि वन विभाग अपने कार्य व दायित्वों के प्रति कितना सजग है। शुकतीर्थ गंगा खादर क्षेत्र में स्थलीय वन्य जीवों में हिरण की प्रजातियां निवास करती हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय पक्षी मोर, तेन्दुआ आदि सहित जली जन्तुओं घडियाल व दुर्लभ प्रजातियों की मछलियां तथा पक्षियों की अगर बात करें तो विदेशी पक्षियों का डेरा भी भारी संख्या में यहां रहता है। इतना सबकुछ होने के बावजूद वन्य जीवों की सुरक्षा राम भरोसे ही है। गत वर्ष भोकरहेडी के जंगल में तेन्दुए के शिकार का प्रयास शिकारियों द्वारा किया गया। वहीं हाल ही में राष्ट्रीय पक्षी मोर का शव क्षत विक्षत हालत में मिला था, जिससे साफ जाहिर होता है कि क्षेत्र में वन्य जीवों का शिकार जारी है। वहीं गंगा नदी में जलीय जीवों का शिकार कर उनकी तस्करी की जाती है। जिसके अनेक उदाहरण मिलते रहते हैं। वन विभाग के कार्यालय पर तैनात कर्मचारियों ने बताया कि वन विभाग के पास न तो जानवारों के लिए कोई एम्बुलेंस हैं और न कोई अन्य आधुनिक साधन है। यहां तक की आपातकालीन चिकित्सा सेवा भी नहीं है। वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर ढुलमुल नीतियां जानवरों की जिन्दगियों के लिए खतरा बनी हुई हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अभी भी ठोस नीतियां व प्रभावी प्रयासों की दरकार है। वन विभाग कार्यालय के बाहर लगा जर्जर हालत में बोर्ड वन विभाग की लापरवाही की दास्तान स्वयं बयान करने के लिए काफी है।

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