अभी बहुत सारी ‘आयशा’ कर रही संघर्ष, जिन्हें बचाने की जरूरत

मरकर नहीं, जिंदा रहकर मिलता है हक: महजबी
-तलाक देने के बाद इद्दत पर पत्नी को नहीं, पति को बैठना चाहिए
-आयशा द्वारा उठाए गए खुदकशी के कदम को महजबी ने बताया गलत
-सरकार का किया समर्थन, बोली, मुस्लिम महिलाओं के लिए भाजपा उठा रही सराहनीय कदम
लियाकत मंसूरी
मेरठ। गुजरात की आयशा दहेज की बलि चढ़ गई। वह जीना चाहती थी, शौहर के साथ जिंदगी बशर करना चाहती थी। उसकी ख्वाहिश, आरजू और तमन्नाएं उसी के साथ साबरमती में डूब गई। जिसने भी आयशा द्वारा बनाए गए वीडियो को देखा, वह अंदर तक हिल गया। अब आयशा दुनिया में नहीं है, लेकिन अभी भी ऐसी अनेकों आयशा हमारे बीच है, जिनको बचाना है, जिनका दहेज के लिए उत्पीड़न किया जा रहा है। महिला दिवस के मौके पर एक ऐसी ही महिला से विशेष बातचीत हुई, जो दहेज की बलि चढ़ते-चढ़ते बच गई। इस महिला ने ससुरालियों के उत्पीड़न का जवाब दिया। कानून की मदद ली। अब वह उन महिलाओं को बचा रही है, जो ससुरालियों के उत्पीड़न का शिकार है। पति के जुल्मों का शिकार है। महिलाओं का लड़ना सीखा रही है।
मवाना के गाढ़ा चौक निवासी महजबी के लिए यह राह आसान नहीं थी। ससुरालियों के साथ लड़ाई लड़ना, घर से निकलकर कानून की मदद लेना और पर्दे से बाहर आना मुश्किलों से भरा था। महजबी नाज़ का कहना है कि शुरूआती दौर में काफी कठिनाइयों का सामना किया। क्योंकि जिंदा रहना था, इसलिए लड़ना जरूरी था। सामाजिक संस्था अखिल भारतीय उपभोक्ता का सहारा मिला और फिर सब आसान होता गया। अब संस्था के साथ जुड़े हुए महजबी को 15 साल हो गए है, खुद इंसाफ पाया और कितनी ही महिलाओं को इंसाफ दिलाया जा चुका है। आयशा के बारे में महजबी का कहना है कि उसको खुदकशी नहीं करनी चाहिए थी। एक लड़की की जब शादी हो जाती है तो उसका मायका खत्म हो जाता है। ससुराल वाले अगर उत्पीड़न करते हैं, तो आत्महत्या इसका हल नहीं है। लड़कियों को लड़ना चाहिए। हक मरकर नहीं मिलता, बल्कि जिंदा रहकर मिलता है।
हर मजहब में सारी प्रथाए महिलाएं के लिए क्यों?
जरा सी बात पर पति तलाक दे देता है, फिर पत्नी को इद्दत पर बैठना पड़ता है। ये अत्याचार महिला के लिए ही क्यों? सती प्रथा भी महिला के लिए थी और इद्दत जैसी प्रथा भी महिलाओं के लिए, इसको बदलना चाहिए। पति घर के बाहर रहकर मौज उड़ाता है और पत्नी घर के अंदर चारदीवारी में सिसकती रहती है। महजबी का कहना है कि इद्दत पर पत्नी को नहीं, पति को बैठना चाहिए। उलमाओं को आगे आकर महिलाओं का समर्थन करना चाहिए, तभी इन जुल्मों को रोका जा सकता है।
लड़कियों का आत्मनिर्भर होना जरूरी
महजबी एक सामाजिक संस्था के साथ मिलकर लड़कियों को आत्मनिर्भर बना रही है। सिलाई, कढ़ाई सिखाकर उनको कामयाब बना रही है। गांव-गांव जाकर महजबी ने सेंटर स्थापित किए। 125 से अधिक सेंटरों पर सिलाई, कढ़ाई सिखाई जा रही है। महजबी का मानना है कि लड़कियां जब आत्मनिर्भर होंगी, तभी लड़ाई के लिए तैयार रहेंगी। इसके लिए सरकार भी मदद कर रही है। लड़कियों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।
जहां दहेज वहां निकाह पढ़ाने से इंकार करे उलमा
दहेज लेना और देना हर मजहब में मना है, फिर भी दहेज अभिशाप बन रहा है। धार्मिक गुरुओं को आगे आना होगा। उलमा निकाह न पढ़ाई और संत फेरों के वक्त शादी कराने से इंकार कर दे, तभी दहेज की रोकथाम होंगी। महजबी ने बताया कि बिना दहेज के वे सैकड़ों से अधिक शादियां करा चुकी है। एक साथ 70 कराने पर एसडीएम ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है, हालांकि अब सरकार बिना दहेज के शादी करा रही है।