साहित्य

युवा पीढ़ी को संस्कारित करने का जिम्मा माता-पिता का

सरिता जैन

मुरैना


वर्तमान समय जिसे भौतिक युग कहा जाता है उस युग मे धीरे-धीरे परिवर्तन का दौर चल रहा है इस दौर में घर परिवार से लेकर सब कुछ प्रभावित हुआ है इन सब हालातो में आने वाली पीढ़ी को संस्कारित करने की जिम्मेदारी माता पिता की है। अगर हम अपने बच्चों को पुरातन संस्कारों से,अपने पूर्वजों के इतिहास से परिचित कराते रहेंगे तो निश्चित तौर पर हमारी पीढ़ी संस्कारवान होगी, संस्कारों देने के साथ साथ बच्चों को परिवार का महत्व समझाने की भी बहुत आवश्यकता है ।यह तो सर्वविदित है कि सच्चा सुख परिवार के आपसी स्नेह और प्रेम से ही है देखा जाए तो
बच्चों एवं अपने परिवार के साथ खुश रहने से बड़ा और सुख क्या हो सकता है। लेकिन यह भी सही है कि जीवन में सब कुछ स्थाई नहीं है कभी कभी समय समय पर सुख दुःख के उतार चढ़ाव आते रहते हैं। जीवन का दूसरा नाम ही दुख- सुख हैं इन हालातों में अपने परिवार में सुख और शान्ति का माहौल बनाऐ रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है, और यह केवल परिवार के किसी एक सदस्य की जिम्मेवारी नहीं बल्कि सारे परिवार की जिम्मेदारी है खासतौर पर परिवार में सामंजस्य बैठाए रखने के लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने चाहिए। तभी परिवार में सुख और समृद्धि बनी रह सकती हैं। बच्चे परिवार के भविष्य होते हैं इसलिए बच्चों के लिए नियम,अनुशासन और सीमाएं होना भी जरूरी है, माता पिता को चाहिए कि वह बच्चों को डराने धमकाने के बजाए प्यार से समझाकर माहौल को सहज बनाये रखने का प्रयास करें अपने परिवार के साथ नियमित रूप से बाहर घूमने जाएं और बच्चों को बाहर की दुनिया से परिचित कराएं। परिवार के साथ अच्छा समय बिताने से आपस में प्यार और मजबूत होता है। अक्सर परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत हमेशा खुली होनी चाहिए। अगर कभी परिवार के सदस्यों के बीच किसी प्रकार की बहस भी हो जाए, तो बहस को सामंजस्य पूर्ण तरीके से निपटाना चाहिए हर किसी के जीवन में चुनौतियां और परेशानियां आती हैं । ऐसे मुश्किल समय में परिवार में एकता की जरूरत होती हैं। हम सब कोरोना काल में देख चुके हैं कि परिवार का महत्व क्या होता हैं। परिवार के मुखिया द्वारा सभी सदस्यों से किया गया समानता का व्यवहार एकता और प्रेम बढ़ाता है। खास तौर जब भी मौका मिले परिवार के साथ छुट्टियां बिताए एक साथ खान खाए धार्मिक अनुष्ठान और पारिवारिक कार्यक्रमों में एक साथ शामिल हों।परिवार के साथ इस तरह समय बिताने से आपसी समझ मजबूत होती है और परिवार मिलजुल कर साथ रहता है। हमे अपने व्यवहार को कुछ ऐसा रखना चाहिए। जैसा व्यवहार हम दूसरों से चाहते है नित्य नियम में हम जो वाणी भाषा बोलते है वह बहुत मायने रखती है। अगर आप का कोई भाई या मित्र आपकी कोई बात नही माने, तो उस पर चिल्लाए नहीं, और न ही उस पर आरोप लगाए,बल्कि उसे समझाए उसकी गलती माफ कर दें। अगर आपसे कोई गलती हो गयी है, या आपको किसी बात का दुख है, तो आप अपने परिजनों का सामना करें। और अपनी गलती के लिए माफी मांगें। अपनी गलती मानना ओर उसे सुधारना सबसे जरूरी कदम है। एक दूसरे को समझ कर एक दूसरे के काम आ कर हम अपने परिवार को खुशहाल बना सकते हैं ।
सरिता जैन

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