उमरदराज लोगो ने मुंह मोड़ा तो युवाओं ने थामा किताबो का दामन, इंटरनेट की वजह से बन रही दूरी

अनस नसीर
मुजफ्फरनगर। यहां पिछले एक दशक में पुस्तकों के प्रति रूझान तेजी के साथ गिरा है। यहां पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें मौजूद है, लेकिन इन्हें पढ़ने के लिए जो भीड़ उमड़ती थी, अब वह नहीं है। कागजों में तो पुस्तकालय के सदस्यों की संख्या लगभग एक हजार ही है, इनमें से लगभग 200 उम्रदराज लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे है।
युवाओं ने यहां थोड़ा उत्साह दिखाया। साफ है कि बुर्जुगों ने किताबों से मुंह मोड़ा तो युवाओं ने पुस्तकालय पहुंचकर स्टडी शुरू की। यह बात दिगर है कि ये युवा केवल प्रयोगात्मक परीक्षाओं की तैयारी से जुडी पुस्तक पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इनकी रूचि न तो अपनी सभ्यता को समझने में है और न ही देश का इतिहास पढ़ने में। जो युवा यहां पहुंचते हैं उनका लक्ष्य यही होता है कि जो उनके काम की चीज है, उसका अध्ययन किया जाए।
मंगलवार को इस संवाददाता ने राजकीय पुस्तकालय महावीर चौक पहुंचकर जायजा लिया गया। जहां पूरे पुस्तकालय में तीन पाठक किताबें पढ़ते मिले। तीनों बालिकाएं कम्पीटिशन की तैयारी से जुड़ी पुस्तक की स्टडी कर रही थी। यहां मौजूद कर्मचारी ने बताया कि अब पहले की तरह बात नहीं रही। पहले काफी लोग किताबें पढ़ने आते थे, लेकिन अब यह संख्या बहुत कम हो गई है। वजह इंटरनेट व मोबाइल है, जिसे जो किताब या फिर साहित्य पढ़ने का मन होता है, वह गूगल की मदद से उसे अपने मोबाइल पर ही ओपन कर लेता है। ऐसे में पुस्तकालय तक आने की जहमत बहुत कम लोग उठाते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि पुस्तकालय में पुस्तकों से जुड़ी तमाम व्यवस्थाएं तो चाकचौबंद हैं। यहां खुद पुस्तकालय अध्यक्षा सरोज गुप्ता पुस्तक प्रेमी है, वे खुद दिन भर पुस्तकालय में मौजूद रहकर देखरेख करती हैं। यहां आने वाले लोगों को इस बात के लिए प्रेरित भी किया जाता है कि वे पुस्तकालय के सदस्य बन जाए, ताकि उन्हें अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने का मौका मिला, लेकिन जिले के बाशिंदे है कि किताबों से मानो मुंह मोड़ चुके हैं। जिसे जो वक्त मिलता है, वह अपने मोबाइल व इंटरनेट को देता है, शायद यही वजह है कि पुस्तकालय नाम की इस बिल्डिंग में पाठकों की संख्या नगण्य हो चली है।
सामाजिक संस्थाएं भी बना रही हैं दूरी – लगातार पाठकों की घटती संख्या चिंता का विषय बन रही है। सामाजिक संस्थाएं इसको लेकर जरा भी जागरूक नहीं है। यदि जागरूकता अभियान चलाया जाए तो स्थिति संभल सकती है।
पुस्तक ज्ञान का भंडार है, जितना पुस्तक को पढ़ा जाएगा, उतना ही ज्ञान निखरेगा। इंटरनेट से वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। मोबाइल के प्रयोग से आंखों को भी हानि हो रही है। पुस्तक पढ़ने वाले लोगों की कमी होना साहित्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके लिए जागरूकता की जरूरत है, जो लोग पुस्तक प्रेमी है, उन्हें आगे आना चाहिए।
सचिन कुमार शर्मा
पुस्तक प्रेमी, ग्राम ढिंढावली।
इंटरनेट-मोबाइल का बढ़ता वर्चस्व किताबों पर भारी पड रहा है। पाठकों की संख्या शून्य की ओर बढ़ रही है, हालांकि नई उम्र के युवा किताबों की ओर अपनी रूचि दिखा रहे हैं। उनके यहां अब उम्रदराज पाठकों की संख्या का ग्राफ घट रहा है। नए सदस्य भी इक्का-दुक्का बन जाते हैं। पुस्तकालय में हर रूचि की पुस्तक उपलब्ध् है। नए सदस्यों को तत्काल सदस्यता दे दी जाती है।
सरोज गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्षा राजकीय पुस्तकालय, मुजफ्फरनगर।
1986 में हुई थी स्थापना
मुजफ्फरनगर में महावीर चौक पर स्थित पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1986 में की गई थी, तब यह पुस्तकालय जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में चलता था। दो साल तक यही से पुस्तकालय चलता रहा। इसके बाद शासन ने जीआईसी के एक हिस्से में पुस्तकालय की स्थापना किए जाने की सहमति दी। सन् 1988 में यह पुस्तकालय पूरी तरह से वजूद में आया। इसके बाद यहां ऐसी पुस्तकें भी आई, जो कभी लोगों ने देखी भी नहीं थी, लेकिन अधिकतर पुस्तकें आज अलमारियों में कैद हैं।
डिजिटल लाईब्रेरी भी बन गई, मगर…
जिले का इतिहास एक क्लिक पर जानने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए यहां डिजिटल लाईब्रेरी की स्थापना की गई। स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल की पहल के चलते जिला प्रशासन के पास जो एतिहासिक किताबें थी, उन्हें स्केन करके आनलाईन किया गया। इसका एक कक्ष अलग बन चुका है, लेकिन यह अभी चालू हालत में नहीं है। मानों की डिजिटल लाईब्रेरी नवजात शिशु की अवस्था में है। धीरे- धीरे विकास होने की उम्मीद है। कम्प्यूटर तो लगे हैं, मगर उन्हें आपरेट करने के लिए कर्मचारी की नियुक्ति नहीं है। ऐसे में किताबों को स्केन करके अपलोड करने का काम पूरा नहीं हो पा रहा है।