शायर सलीम अहमद सलीम की याद में हुई ताजियती नशिस्त… उर्दू की खिदमात को याद किया गया
मआरूफ़ शायर सलीम अहमद सलीम का इंतक़ाल

मआरूफ़ शायर सलीम अहमद सलीम का इंतक़ाल, उर्दू अदब को हुआ नाक़ाबिले तलाफ़ी नुक़सान
उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन ने मुनअकिद की ताज़ियती नशिस्त, अदबी और समाजी हल्को में ग़म की लहर
मुज़फ्फरनगर। उर्दू अदब की दुनिया एक अज़ीम शख़्सियत से महरूम हो गई। मआरूफ़ शायर सलीम अहमद सलीम के इंतक़ाल की ख़बर ने पूरे अदबी और इल्मी हलक़ों को सदमे में डाल दिया है। 16 जुलाई की सुबह उन्होंने मेरठ के एक अस्पताल में आख़िरी सांस ली। वे शुगर, लीवर और किडनी संबंधी बीमारियों से लंबे समय से जूझ रहे थे।
ताज़ियती नशिस्त में अकीदतों का इज़हार…
इस मौके पर उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (UDO) की जानिब से एक ताज़ियती नशिस्त मुनअकिद की गई जिसमें ज़िला सदर कलीम त्यागी, सरपरस्त डॉ. शमीम उल हसन और हाजी सलामत राही समेत कई अदीब, शायर और समाजी शख़्सियात मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि सलीम अहमद सलीम का इंतक़ाल उर्दू शायरी का बहुत बड़ा नुक़सान है।
उर्दू के सच्चे ख़ादिम और मोहब्बत के शायर
कलीम त्यागी ने कहा कि “सलीम साहब की शायरी में दिल की सदाक़त, वक़्त की सच्चाई और एहसास की नज़ाकत नुमायां थी। उनकी रचनाएँ मोहब्बत, दर्द और इंसानियत की गहराई को बयान करती थीं।”
उनके शागिर्द शायर अरशद ज़िया ने कहा कि उस्ताद मोहतरम हर महफ़िल की जान थे। “उनका होना ही एक मुशायरे की कामयाबी की ज़मानत होता था।”
मुशायरे का सपना अधूरा रह गया..
डॉ. फ़रुख़ हसन ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यू०डी०ओ० की जानिब से सलीम साहब के ऐज़ाज़ में एक मुशायरा मुनअकिद करने की तैयारी थी, मगर क़ुदरत को मंज़ूर नहीं था।
अदबी हल्क़ों में शदीद रंज व ग़म…
ताज़ियती नशिस्त में तहसीन अली असारवी, डॉ. सलीम सलमानी, मौलाना मूसा क़ासमी, बदरुज्ज़माँ ख़ान, शमीम क़स्सार, नदीम मलिक, हाजी शकील अहमद, मास्टर रईसुद्दीन राना, इम्तियाज़ अली, डॉ. रियाज़ अली, साजिद ख़ान, इशरत त्यागी, साजिद हसन त्यागी, क़ारी तौहीद अज़ीज़, मास्टर ख़लील, असअद फारूक़ी, गुलफाम अहमद , क़ारी सलीम मेहरबान, डॉ. तनवीर गौहर, अब्दुलहक़ सहर,हाजी मोहम्मद अहमद ख़ान समेत दीगर कई शख़्सियात ने शिरकत की।
सोशल मीडिया पर अशआर और यादें…
सलीम साहब के चाहने वाले सोशल मीडिया पर उनके अशआर, तस्वीरें और यादें साझा कर रहे हैं। लोग उन्हें एक ऐसे शायर के रूप में याद कर रहे हैं जिसने उर्दू ज़बान को एक नई तहज़ीब और जज़्बात की गहराई दी।