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कबाड़ी बाजार में एक बार फिर देह व्यापार का काला सच सामने आया… 21 युवतियां- 4 दलाल- 5 कोठा संचालिका व एक ग्राहक अरेस्ट

मेरठ का कबाड़ी बाजार: “एशिया के सबसे पुराने रेडलाइट एरिया” में से एक में पुलिस की बड़ी कार्रवाई

2019 में हाईकोर्ट ने इस क्षेत्र के 58 कोठों को बंद करने का आदेश दिया था, लेकिन 2023 में कुछ कोठों को शर्तों के साथ खोलने की अनुमति दी गई थी।
अब सवाल उठता है—क्या पुलिस की निगरानी में चूक हुई, या फिर यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है?

AI photo

UP में मेरठ के कबाड़ी बाजार क्षेत्र, जो एशिया के सबसे पुराने और चर्चित रेडलाइट एरिया में से एक माना जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में है। कल रात पुलिस ने यहां एक कोठे पर छापेमारी करते हुए 21 लड़कियों को बरामद किया, जिनमें से कई नाबालिग थीं। इस रेड में पुलिस ने कोठा संचालिका, 4 दलालों और कुछ ग्राहकों को गिरफ्तार किया है। यह घटना बताती है कि मेरठ जैसे शहरों में देह व्यापार जैसे अवैध धंधे अब भी जड़ जमाए हुए हैं, और पुलिस को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी।

🔍 इतिहास और राजनीति का जुड़ाव
कबाड़ी बाजार का नाम राजनीतिक इतिहास में भी दर्ज है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान, बीजेपी ने अपनी चुनाव प्रचार की शुरुआत इसी कबाड़ी बाजार से की थी। पूरे शहर में उल्लास का माहौल था, और बाजार को दुल्हन की तरह सजाया गया था। अमित शाह इसी बाजार से होकर शहर में रोड शो करते हुए निकले थे। यह एक बड़ा राजनीतिक संकेत था, जो समाज के उस वर्ग की राजनीति में हिस्सेदारी की ओर इशारा करता था, जिसे सामान्यतः मुख्यधारा से बाहर समझा जाता था। यह घटना उस समय की थी जब कबाड़ी बाजार को भी समाज के हाशिये से बाहर लाने की कोशिश की जा रही थी।

इतिहास की परछाइयां...

कबाड़ी बाजार का इतिहास मुगलों के समय से जुड़ा हुआ है, जब इस बाजार में मुजरे हुआ करते थे और इसे एक प्रकार की सांस्कृतिक धरोहर माना जाता था। उस समय इस बाजार में व्यापारियों की दुकानें नीचे थीं और ऊपर वेश्याओं के कोठे होते थे। यह बाजार न केवल एक व्यापारिक स्थल था, बल्कि यहां कई प्रसिद्ध प्रेम कहानियां भी पनपी थीं। एक प्रसिद्ध कहानी है, जिसमें हरियाणा के एक नवाब और कबाड़ी बाजार की एक हसीन वैश्या के बीच प्रेम और अदावत का सिलसिला था।

💥 2019 में कोर्ट का आदेश और 2023 में फिर से खुले..
2019 का आदेश: 2019 में एक ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई के बाद, सोशल एक्टिविस्ट लोकेश खुराना की याचिका पर हाईकोर्ट ने इस बाजार के 58 कोठों पर ताला लगाने का आदेश दिया था। यह एक बड़ी कानूनी जीत मानी गई थी, जो देह व्यापार के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई थी। हालांकि, इसके बाद से यहां स्थिति में बदलाव आया, और फिर 2023 में हाईकोर्ट ने कुछ कोठों को फिर से खोलने की अनुमति दी, लेकिन शर्तों के साथ। इन 15 कोठों को इस शर्त पर खोला गया कि यहां वैश्यावृत्ति नहीं होगी और कोठा संचालिकाएं अपने परिवारों को यहां निवास कराएंगी।

फिर से पनपा देह व्यापार…
हालांकि कोर्ट के आदेश और उच्च न्यायालय की शर्तों के बावजूद, बीते दो वर्षों में यहां फिर से देह व्यापार बढ़ने लगा। यह अवैध धंधा खाकी की निगरानी के बावजूद लगातार चल रहा था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस की कार्रवाई और निगरानी में कोई कमी थी, जिससे इस तरह का अवैध कारोबार पनपता रहा।

🕵️‍♂️ मुक्ति फाउंडेशन की भूमिका और पुलिस की कार्रवाई..

दिल्ली स्थित मुक्ति फाउंडेशन ने पहले ही पुलिस को सूचित किया था कि कबाड़ी बाजार में कुछ कोठों पर फिर से वैश्यावृत्ति हो रही है। फाउंडेशन ने पुलिस अधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन इस पर स्थानीय पुलिस टीम की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। इसके बाद, मुक्ति फाउंडेशन ने बाहर की पुलिस टीम से इस मामले में मदद मांगी और फिर कार्रवाई के लिए बाहरी पुलिस टीम को भेजा गया।

पुलिस की कार्रवाई…
पुलिस ने आखिरकार छापेमारी की, जिसमें कई गिरफ्तारी हुई और कोठों को सील कर दिया गया। इस छापेमारी में 21 लड़कियों को बरामद किया गया, जिनमें कई नाबालिग थीं, जो इस अवैध धंधे का शिकार हो चुकी थीं। इसके अलावा, 4 दलालों और कुछ ग्राहकों को भी गिरफ्तार किया गया। पुलिस की इस कड़ी कार्रवाई के बाद कबाड़ी बाजार में एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है।

समाज पर असर और पुलिस की जिम्मेदारी….
यह घटना समाज में बढ़ते देह व्यापार के संकेत देती है, जहां एक तरफ कानूनी और राजनीतिक प्रयास हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इस तरह के अवैध धंधे को रोकने के लिए पुलिस की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। एक तरफ जहां कोर्ट ने कार्रवाई की, वहीं पुलिस की चुप्पी और बाहरी मदद की आवश्यकता ने इस मामले को और भी जटिल बना दिया।

क्या आगे कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे? अब यह देखना होगा कि इस कार्रवाई के बाद कबाड़ी बाजार में देह व्यापार पर लगाम लगाने के लिए पुलिस और प्रशासन क्या कदम उठाते हैं। क्या पुलिस विभाग और समाज के अन्य हिस्से इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे, या यह फिर से किसी के कानूनी और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार होगा?

क्या मेरठ पुलिस अब इस पूरे नेटवर्क को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएगी? या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?

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