राजनीति

शहर विधानसभा में होंगी कांटे की टक्कर, बागी बिगाड़ेंगे खेल

रफीक अंसारी का बिरादरी, कमलदत्त का पार्टी में हो रहा विरोध
-सदर विधानसभा सीट को जीतना किसी भी दल के लिए आसान नहीं
लियाकत मंसूरी
मेरठ। शहर विधानसभा सीट को लेकर इस बार मुकाबला कड़ा रहेगा। शहर विधायक रफीक अंसारी के लिए जीत की राह आसान नहीं होंगी। अंसारी बिरादरी से ही विरोध के सुर बाहर आने लगे हैं। पांच साल गुजर जाने के बाद भी शहर विधायक अपने ही लोगों के काम नहीं करा पाए। इसका फायदा बसपा द्वारा घोषित किए गए प्रत्याशी पार्षद हाजी दिलशाद शौकत को हो सकता है, हालांकि शहर सीट पर उनका अपना वोट बैंक न होने के कारण उन्हें भी नुकसान हो सकता है। बताया जा रहा है कि दिलशाद का दक्षिण सीट में वोट बैंक है। कमलदत्त शर्मा भाजपा के प्रत्याशी है, उनके पास भाजपा के अलावा मुस्लिमों का भी वोट बैंक है, मगर उन्हें नुकसान उनकी ही पार्टी के लोग पहुंचा सकते हैं। माना जा रहा है कि शहर सीट पर त्रिकोनीय मुकाबला होगा। जिसका फायदा कांग्रेस के प्रत्याशी को भी हो सकता है, जिसकी अभी तक घोषणा नहीं की गई है।
1857 में हुई क्रांति की गवाह बनी मेरठ की धरती अपने में अनोखा इतिहास समेटे है। यहां की राजनीति भी दिलचस्प है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे प्रमुख जिलों में शुमार मेरठ की शहरी क्षेत्र की सदर विधानसभा सीट को जीतना किसी भी दल के लिए आसान नहीं रहा है। वैसे तो यह सीट बीजेपी का ही गढ़ मानी जाती है लेकिन, पिछले चुनाव में यहां सपा ने झंडा गाड़ दिया था। शहर सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के रफीक अंसारी ने चुनाव जीत लिया था। उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता डॉक्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी की चुनौती को समाप्त किया था। बीजेपी उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहें लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से चार बार विधायक बन चुके हैं। लक्ष्मीकांत वाजपेयी साल 1989 से ही मेरठ सदर से चुनाव लड़ रहे हैं। वाजपेयी ने 1989, 1996, 2002, 2012 के चुनावों में जीत हासिल की। हालांकि उन्हें दो बार हार का सामना भी करना पड़ा। 1993 और 2007 में ने उन्हें पटखनी दी थी। पार्षद से राजनीति शुरू करने वाले अखिलेश के करीबी रफीक अंसारी ने 2017 में उन्हें हरा दिया। इस चुनाव में रफीक अंसारी को 103217, जबकि लक्ष्मीकांत वाजपेई को 74448 वोट मिले थे. वहीं बसपा के पंकज जौली को 12636 वोट हासिल हुए थे।
शहर विधायक का इसलिए हो रहा विरोध
पार्षद से विधायक बनें रफीक अंसारी का बिरादरी के लोगों ने ही विरोध करना शुरू कर दिया है। इस सीट पर अंसारी बिरादरी बहुसंख्या में है, जिसके दम पर ही रफीक अंसारी विधानसभा तक पहुंचा थे। लेकिन इस बार उनकी राह मुश्किल है। सूत्रों की माने तो अंसारी समाज शहर विधायक से खफा है। बताया जाता है, पांच साल में वे किसी से नहीं मिले। घर रहते हुए भी वे मिलने से इंकार कर देते थे। ये नाराजगी रफीक अंसारी की राह में रोड़ा अटका सकती है। इसके अलावा कब्रस्तान की जमीन में धांधली के भी उन पर आरोप है।
कमलदत्त शर्मा का इसलिए हो रहा विरोध
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के कमलदत्त शर्मा करीबी है। अपने उत्तराधिकारी के रूप में लक्ष्मीकांत ने शहर सीट कमलदत्त को दी है। लेकिन कमलदत्त के लिए इस सीट को जीतना आसान नहीं होगा। उनके पास भाजपा के अलावा अन्य समाज का भी वोट बैंक है, मगर उनकी राह में पार्टी के ही लोग मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो विरोधी जनता क बीच कमलदत्त का चरित्र गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, जिसका नुकसान कमलदत्त को हो सकता है।
कांग्रेस ने घोषित नहीं किया अपना उम्मीदवार
कांग्रेस ने अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। इस रेस में शहजाद यूसुफ सबसे आगे हैं। इनके दादा नेता हकीमुद्दीन स्वत्रंतता सेनानी थे। शहजाद के पिता यूसुफ दो बार सदर सीट पर चुनाव लड़ चुके हैं। 2017 में कांग्रेस से गठबंधन के कारण सपा को इसका फायदा हुआ था। रफीक अंसारी, कमलदत्त शर्मा का विरोध और दिलशाद शौकत का अपना वोट बैंक न होने के कारण इस बार कांगे्रस प्रत्याशी को सदर सीट पर फायदा हो सकता है।
शहर सीट पर मतदाता
कुल मतदाता- 3 लाख 40 हजार (अनुमानित)।

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