जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव

अहिंसा के अवतार युगदृष्टा भगवान महावीर स्वामी का जन्मकल्याणक चैत्र सुदी तेरस 14 अप्रेल गुरुवार को मना रहे है। भगवान महावीर का जन्म विहार प्रदेश के नालंदा जिले के कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला के नंदावर्त महल में चैत्र शुक्ला तेरस को हुआ था। जिस समय भगवान महावीर का अवतरण हुआ, उस समय दुनियाँ में हिंसा और अत्याचार का बोल बाला था। मात्र तीस वर्ष की आयु में वह घर बार छोड़कर निकल पड़े। महावीर ने बारह वर्ष तक कठोर साधना व तप किया। तत्पश्चात इन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। फिर इन्होंने कैवल्य ज्ञान और सत्य मार्ग का उपदेश जन जन तक पहुँचाया। महावीर ने विषम परिस्थिति में सच्चा मार्ग दुनियाँ को दिखाया। आपने प्राणीमात्र के सुख के लिये “जिओ और जीने दो” का अमूल्य मंत्र दिया।
विश्व प्रेम ही भगवान महावीर का दिव्य संदेश है।
भगवान महावीर का मंगल उपदेश था कि पाप से घ्रणा करो न कि पापी से। उन्होंने विरोधी को कभी विरोध से नहीं अपितु सद्भावना एवं शान्ति से जीता।
अहिंसा,अनेकान्त और स्याद्वाद का सिद्धांत महावीर की अनुपम देन है। केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने जैन धर्म का प्रचार आरंभ किया। उन्हीं भगवान महावीर के जन्मकल्याणक महोत्सव को लोग महावीर जयंती के रूप में याद करते है। इस दिन सभी जैन मंदिरों और स्थलों को सजाया जाता है। एक दिन पहले सुबह प्रभात फेरी भी निकाली जाती है इस दिन सुबह भगवान महावीर स्वामी का अभिषेक पूजन पाठ होने के बाद भव्य जुलूस व शोभायात्रा निकाली जाती है। उसके पश्चात् मंदिर जी में आकर शान्तिधारा होती है। संध्याकालीन बालक वर्धमान महावीर का पालना झुलाया जाता है
मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे।
दीन दुखी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्रोत बहे।।
सरिता जैन, मुरैना ✍🏻