साहित्य

घर-परिवार, खेत-खलिहान और खेल के मैदान तक महिलाएं…

अतीत में महिलाओं की खेल में सहभागिता कम ही नज़र आती है, तब अधिकांश महिलाएं केवल पारिवारिक जिम्मेदारियों में ही खुद को समेटे हुई थी। मगर समय के साथ महिलाएं खेल में मनोरंजन के रूप में रुचि लेने लगी और अपने गृह कार्य से कुछ समय चुराना शुरू कर दिया परंतु उनके लिए अभी तक खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन था। वहीं पुरुष वर्ग के लिए यह प्रतिस्पर्धा के रूप में विभिन्न प्रतियोगिताओं के रूप में आयोजित होने लगा। भारतीय संस्कृति में खेलों का विशेष महत्व रहा है। दुनिया को पासे अथवा शतरंज के आनंद से अवगत कराने का काम भारत ने ही किया था। कुश्ती, मल्ल युद्ध, रथ दौड़ आदि खेलों का वृहद स्तर पर आयोजन इतिहास में देखने को मिलता है। ग्राम स्तर पर मनोरंजन के रूप में प्रारंभ हुए ये खेल कुछ समय पश्चात मंडल, राज्य और अंतर राज्यों में प्रारंभ होने लगीं।

अगर हम महिला सहभागिता की बात करें सर्वप्रथम 1986 के ओलंपिक जैसे खेलों में केवल 38% महिलाओं ने सहभागिता दी यह महिलाओं की खेल जगत में एक नवीन शुरुआत मानी जा सकती है। धीरे धीरे महिलाएं विभिन्न प्रकार के एथलेटिक एवं टीम खेलों में भाग लेना प्रारंभ करने लगीं। परंतु उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
पुरुषवादी समाज में महिलाओं को घर की चारदीवारी से खेल के मैदान तक का रास्ता तय करने में कितने ताने, कितने उलहाने सहन करने पड़े होंगे। यह इस बात से पता लगाया जा सकता है जब आज की 21वी सदी की नारी को खेल का रास्ता चुनने में कठिनाइयां कम नहीं आती हैं तो अतीत में उनके लिए यह रास्ता तय करना कितना मुश्किल रहा होगा।
उन्हें लैंगिक भेद का खेल में हर कदम पर सामना करना पड़ा होगा। उस समय में खेल के उपकरण खेल के मैदान खेल में दक्ष अध्यापक भी महिलाओं को नहीं मिलते रहे होंगे। परंतु समय परिवर्तन के साथ महिलाओं को संसाधन प्राप्त होने लगे भारतीय खेल परिवेश में महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित होना शुरू हो गई और भारत सरकार एवं खेल प्राधिकरण के द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान खेल में सुविधाएं प्राप्त होना शुरू हो गया। यह काल महिलाओं के खेल में सहभागिता के रूप में स्वर्णकाल के नाम से जाना गया।

वर्तमान परिदृश्य में महिलाएं पूर्ण रूप से एथलेटिक वा टीम एवं व्यक्तिगत खेलों में अपनी सहभागिता देने लगी है। जिसके परिणाम स्वरूप महिलाओं के खेल में उच्च प्रदर्शन प्रारंभ हो गए हैं। अतीत में महिलाओं के खेल में कमियां कहां रही? उनके कुछ बिंदु निम्न वत देखे जा सकते है।

वर्तमान समय में महिलाओं को केवल शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, अभिभावकों के द्वारा उनकी विषय के प्रति रुचि का ध्यान न देना, जो बच्चियां पढ़ने में नहीं खेल में बेहतर परिणाम दे सकती है, असमय पढ़ाई से हटा कर अन्य कामों में लगा देना उनकी प्रतिभा समेटने जैसा जान पड़ता है। महिलाओं को रोजमर्रा के आधार पर लिंगभेद के कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है चाहे वह कार्यस्थल हो या घर। उनके पहनावे उनकी बातचीत, व्यवहार की निगरानी की जाती है उसी आधार पर उनका आकलन किया जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि महिलाएं खेल और मातृत्व के कैरियर के बीच संतुलन स्थापित नहीं कर पाती जिसकी वजह से वह खेलों में उच्च प्रदर्शन नहीं कर सकती। यह खेल जगत में महिलाओं की कम सहभागिता होने का एक विशेष कारण हो सकता है। उन्हें पुरुषों के समान प्रोत्साहन प्राप्त ना होना, एक बिंदु मात्र है इनके अलावा बहुत सी कठिनाई है जिनकी वजह से महिलाओं की सहभागिता खेलों में पूर्ण रूप से नहीं हो पाती।

अगर हम महिलाओं की सहभागिता खेलों में बढ़ाना चाहते हैं तो इन धारणाओं से ऊपर उठकर महिलाओं के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे जैसे- खेलों में महिलाओं की सहभागिता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उन्हें उनके परिवार का सहयोग मिले। इसके अलावा भारत सरकार के द्वारा महिलाओं के खेल में प्रोत्साहन देने हेतु समय समय पर सेमिनार और प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कराया जाना चाहिए। जिससे महिलाओं को खेल के प्रति जागरूक किया जा सके। महिलाओं को विभिन्न वित्तीय सहायता के साथ-साथ खेल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। विभिन्न स्थानीय स्तर पर महिलाओं के लिए विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाए ताकि अच्छे खिलाड़ियों की पहचान हो सके और उनकी प्रतिभा को निखारा जा सके।

यद्धपि हम कह सकते हैं कि वर्तमान में ओलंपिक और पैरा ओलंपिक जैसे खेलों में भारतीय महिलाओं का शानदार प्रदर्शन भारत सरकार के खेलों के प्रति सकारात्मक ऊर्जा का परिणाम है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि खेल में महिलाओं की बढ़ती सहभागिता से खेल में बदलाव की लहर चल पड़ी है। जो दूर तक जाएगी व्यवहारिक और सामाजिक बदलाव ही महिलाओं को आगे लाने के द्वार खोलेगा अतः महिलाएं अपनी सहभागिता से समाज की विचारधारा को धीरे-धीरे बदलने में सक्षम हो जाएंगी।

अमित नागर,
सहायक आचार्य श्री
(वनस्पति विज्ञान)
श्री द्रोणाचार्य महाविद्यालय (दनकौर)

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